नई दिल्ली। रमजान रहमतों, बरकतों और 'गुनाहों से निजात का महीना है। रमजान वो महीना है, जिसमें आप अपनी इबादतों से अपने गुनाह और गलतियां माफ करवा सकते हैं। अल्लाह और उसके रसूल ने कुरआन में वादा किया है कि इस माह जो भी बंदा हमारे बताए नियमों का पालन करते हुए इबादत करेगा, तो उसका सवाब आम दिनों से कई गुना ज्यादा मिलेगा। हर जायज दुआ कुबूल होगी। इस्लाम के पांच स्तंभ हैं, कलमाये शहादत की गवाही, नमाज, जकात, रोजा और हज। यही इस्लाम की बुनियाद है। यह महीना सिर्फ इबादत का ही नहीं इंसानियत के लिए बहुत खास है, तो चलिए ''मंजर भोपाली मशहूर शायर'' से जानते हैं इस बारे में।
हर जायज दुआ कुबूल होगी
का पालन हर जायज दुआ कुबूल होगी। इस्लाम के पांच स्तंभ हैं, कलमाये शहादत की गवाही, नमाज, जकात, रोजा और हज । यही इस्लाम की बुनियाद है। यह महीना सिर्फ इबादत का ही नहीं इंसानियत के लिए बहुत खास है। इसमें रोजेदार अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को भी निभाता है। इस पवित्र महीने में सदकाये फित्र भी निकलने का हुक्म है ताकि समाज के गरीब जरूरतमंद लोगों को भी ईद की खुशियां मनाने का मौका मिले।
नई ऊर्जा का संचार
इस खास महीने में हमारी सबसे बड़ी दुआ यही है कि हमारे मुल्क में अमनो अमान के साथ मोहब्बत कायम रहे। रोजा रोजेदार को अपनी ख्वाहिशों पर काबू पाना सिखाता है। इरादे मजबूत करता है। सुबह पांच बजे से शाम छह बजे तक बिना पानी और खाने के रहने वाले रोजेदारों के जिस्म में नई ऊर्जा का संचार होता है।
रोजे से जुड़े नियम
रोजे के दौरान नमाज जरूर अदा करनी चाहिए। इस दौरान किसी के बारे में मन में बुरे ख्याल नहीं लाने चाहिए। इस दौरान लोगों की मदद करनी चाहिए और अल्लाह की इबादत करनी चाहिए। यह अल्लाह के करीब जाने का पाक महीना है। इसलिए ध्यान रखें कि इस पूरे महीन आपके द्वारा किसी का बुरा न हो।
साथ ही पूरे माह आपसे किसी भी शख्स को नुकसान न पहुंचे। इस दौरान तरावीह और तहज्जुद की जकात और सदका खूब करें।