नई दिल्ली,13 अक्तूबर ( न्यूज़ अपडेट इंडिया ) : हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के लिए चुनावों की तारीखों का ऐलान हो गया है. इसी के साथ राजनीतिक दलों की किस्मत का फैसला होने में ज्यादा दिन नहीं रह गए हैं. राज्य में मुख्य तौर पर दो ही पार्टियों में चुनाव होता है. एक आध सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी काफी स्ट्रॉन्ग होते हैं तो कुछ पर क्षेत्रीय दलों का ही बोलबाला दिखता रहा है। अमूमन राज्य में देखा गया है कि कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस की सरकार आती है. यह सिलसिला काफी सालों से चला आ रहा है. फिलहाल कांग्रेस की सरकार है और कांग्रेस सरकार जहां एक ओर राज्य में वापसी के लिए जोर लगा रहे हैं वहीं विपक्षी बीजेपी इस बार अपना नंबर मानकर चल रही है. ऐसा नहीं है कि बीजेपी के नेता ऐसा सोचकर शांत बैठे हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अपनी रणनीतियों के हिसाब से आगे चल रहे हैं. कुछ दिन पहले ही उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी के साथ यहां पर चुनावी रैलियों के जरिए लोगों को लुभाने का काम शुरू कर दिया था।
सत्ता से दूर बीजेपी एकजुट, वीरभद्र की नाराजगी
जहां बीजेपी सत्ता से दूर होने के कारण एक जुट दिखाई दे रही है. वहीं कांग्रेस के सामने अपनी ही पार्टी के असंतुष्टों को संभालने की बड़ी मुश्किल सामने खड़ी है. खुद मुख्यमंत्री और राज्य के कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता वीरभद्र सिंह पार्टी आलाकमान पर सवाल उठा चुके हैं. तीखा हमला बोलते हुए सिंह कहा था कि पार्टी अपनी पूर्व की नीतियों से 'अलग दिशा की ओर बढ़ रही है' और 'मनमाफिक तरीके से चयन' करने का तरीका इसकी अच्छी संस्कृति का खात्मा कर देगा. वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने कहा कि पार्टी नेतृत्व के सोचने और कामकाज के तरीके में बदलाव लाने की जरूरत है क्योंकि कांग्रेस कई 'कारोबारियों की पार्टी' नहीं है बल्कि यह उन लोगों से संबंधित है जिन्होंने देश की 'आजादी के लिये अपना जीवन कुर्बान किया।
सुखविंदर सिंह सुख्खू से नाराज वीरभद्र
राज्य में दूसरे नेताओं के इससे उनके खिलाफ बोलने का मौका भी मिल गया. यह तो साफ है कि जहां बीजेपी चुनाव के मौसम में आपसी खींचतान से बच रही है वहीं कांग्रेस पार्टी के लिए आरंभ से ही शुभ संकेत नहीं मिल रहे हैं. हाल ही में वीरभद्र सिंह ने कहा था, मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने साफ़ कर दिया है कि मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष उन्हें मंज़ूर नहीं. चुनाव से पहले अगर न बदला गया तो वो आगामी विधानसभा चुनाव से अलग रहेंगे. हिमाचल में कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह नाराज़ हैं. उनका अंदाज़ लगभग बाग़ी है. उन्होंने कहा था पार्टी अपनी नीतियों से भटक रही है. ये भटकाव पार्टी को ख़त्म कर देगा. पार्टी नेतृत्व को विचार और कामकाज के तरीक़ों में बदलाव लाने की ज़रूरत है. वीरभद्र की नाराजगी राज्य में पार्टी की कमान सुखविंदर सिंह सुख्खू को दिए जाने से है. बता दें कि पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह सुख्खू को पद से नहीं हटाएगी।
चुनाव से पहले रिश्तेदारों का झटका
चुनावों से ठीक कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और कांग्रेस को उनके रिश्तेदारों ने ही झटका दे दिया है. वीरभद्र सिंह की रिश्तेदार ज्योति सेन और कुछ अन्य रिश्तेदारों ने बीजेपी का दामन थाम लिया. हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के तहत 9 नवंबर को वोट डाले जाएंगे
बदलती रही है राज्य में सरकार
बता दें कि पिछले चुनाव में बीजेपी पूरी उम्मीद लगाए बैठी थी कि वह सत्ता में वापसी करेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में कुल 68 सीटों में कांग्रेस पार्टी ने 36 सीटों पर जीत हासिल की थी वहीं बीजेपी को 26 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. एक सीट हिमाचल लोकहित पार्टी के खाते में गई तो पांच निर्दलीय भी जीतने में कामयाब रहे थे. वहीं 2007 में 41 सीटों के साथ बीजेपी पहले नंबर पर थी. कांग्रेस को 23 सीटें मिली थीं. एक विधायक बीएसपी का बना था और तीन निर्दलीय भी चुनाव जीते थे.
वीरभद्र पर भ्रष्टाचार के आरोप
इस बार चुनाव में वीरभद्र सिंह पर भ्रष्टाचार के लगे आरोप कांग्रेस के सामने एक चुनौती पेश करेंगे. बीजेपी इसे चुनावी मुद्दा बनाने से नहीं चूकेगी. पिछले साल ही सोलन में एक जनसभा को संबोधित करते हुए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने साफ कहा था कि यूपी- उत्तराखंड में जीत के बाद हिमाचल से कांग्रेस को बाहर करते ही देश कांग्रेस मुक्त हो जाएगा. सीबीआई जांच के चलते बतौर मुख्यमंत्री उन्हें पेशी पर आना पड़ा है. वह अपने को भले ही निर्दोष बता रहे हों लेकिन ऐसे में पार्टी के लिए चुनाव में जाना दिक्कत का सबब बन सकता है.
कानून व्यवस्था पर सवाल
लोगों का मानना है कि हाल ही में राज्य में एक बच्ची से रेप और उसकी निर्मम हत्या के चलते कानून व्यवस्था पर भी सवाल उठे हैं. इस रेप की घटना ने लोगों को सड़क पर उतरकर आंदोलन करने पर मजबूर कर दिया. पुलिस जांच कर रही है, कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया गया है. लेकिन पुलिस अबी तक केस का सुलझा नहीं पाई है.
सरकारी कर्मचारियों की भूमिका
माना जाता है कि हिमाचल प्रदेश के चुनाव में सरकारी कर्मचारियों की भी भूमिका काफी अहम होती है. यह बतौर वोटर सरकार बनाने में खास योगदान देते हैं.