डेराबस्सी। डेराबस्सी इलाके में आज भले ही गौरक्षा के नाम पर दर्जनों संगठन काम कर रहे हैं और सभी के पास आधुनिक साधन उपलब्ध हैं लेकिन 90 के दशक में एक भगवा वस्त्रधारी संत ऐसा था जिसने सबसे पहले गौरक्षा का मुद्दा उठाया ओर यहां-वहां घूमने वाली लावारिस गायों को काम्यक (कैमलो तीरथ) पर बांधना शुरू किया। वह थे महंत रामानंद पुरी। जिन्होंने मंगलवार को समाधि ली है।
उस दौर में न तो मोबाइल क्रांति थी और न ही मीडिया क्रांति। रामानंद पुरी ने एक पत्र लिखा और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एवं पशु प्रेमी मेनका गांधी डेराबस्सी आ पहुंची। यहां आकर उन्होंने कैमलो तीर्थ गौशाला का दौरा किया। मेनका के दौरे का असर यह हुआ कि रामानंद पुरी की मदद को कई उद्योगपति आगे आ गए और कैमलो तीरथ लावारिस गायों की शरण स्थली बन गया।
डेराबस्सी से चार किलोमीटर दूर गांव मुकुंदपुर में स्थित कैमलो तीरथ महाभारत कालीन है। 1968 में कैमलो तीर्थ स्थान पर गद्दी ग्रहण करने के बाद लगभग 52 साल तक रामानंद पुरी ने इस तीर्थ स्थान की सेवा की। आज महंत जी के अंतिम दर्शन के लिए पार्थिव शरीर को गांव की फिरनी में घुमाया गया! कैमलो तीर्थ स्थान पर हजारों की गिनती में आसपास के गांव से पुरुष तथा महिला आई हुई थी लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए गांव में अंतिम दर्शन के लिए शव यात्रा में आए हुए लोगों में से केवल 25 पर्सेंट को ही शव यात्रा के साथ जाने दिया गया! बाकी जनता ने लाइन में लगकर महंत जी के दर्शन तीर्थ स्थान पर ही किए!
महंत जी को समाधि देने का सारे कार्य हरिद्वार पीठ से आए महतो ने किया ! यश 10 जूना अखाड़ा महंत मंडल राजपुरा के सभी साधु भी मौजूद रहे ! पार्थिव शरीर को महंत कैलाश गिरी महंत रघुनंदन गिरी महंत लख्मी चंद गिरी जीने नमक की बोरियों से पार्थिव शरीर को समाधि में अर्पित किया
इस अवसर पर मुकुंद पर गांव के सरपंच श्रीमती जसवीर कौर साबका सरपंच पहल सिंह, गुरु चरण सिंह, विशाल धीर,मुकेश गांधी,जसपाल सिंगला, सुरेश शर्मा कैमलों तीर्थ सुधार समिति के सभी सदस्य, सुभाष गुप्ता, राजू बत्रा गौशाला देखरेख समिति के मुख्य सेवादार, जरनैल सिंह,ब्राह्मण सभा पंजाब के उपप्रधान सुरेश शारदा ब्राह्मण सभा के मंडल प्रधान नरेंद्र मोहन शर्मा तथा मुकुंदपुर गांव के आसपास सभी गांव से भारी संख्या में अंतिम दर्शन करने तथा श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचे।