वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और राजनीतिक विश्लेषक अमित नेहरा ने मानवीय संवेदनाओं पर आधारित, 'कहो नाÓ नामक एक पुस्तक लिखी है। वैसे तो इस पुस्तक को साहित्य का फास्ट फूड कहा जा सकता है। मगर महत्वपूर्ण बात यह है कि असल के फास्ट फूड की तरह इस साहित्यिक फास्ट फूड के साइड इफेक्ट्स नहीं हैं। बल्कि कहो ना को पढ़कर साहित्य प्रेमियों का जायका व हाजमा और ज्यादा बढ़ेगा।