करनाल,16 नवंबर ( न्यूज़ अपडेट इंडिया ) । आजकल चारों तरफ पराली का धुआं स्मॉग का रूप लेकर जहां सडक़ हादसों को न्यौता दे रहा है वहीं पराली के धुएं से क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजिजेज (सीओपीडी) में भी लगातार वृद्धि हो रही है।
क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजिजेज के बारे में जागरूक अभियान
हृदय रोग व कैंसर के बाद सीओपीडी तीसरा सबसे बड़ा हत्यारा
स्मॉग ने एनसीआर में बढ़े बीस फीसदी रोगी
उक्त विचार मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल,शालीमार बाग ने क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी रोग (सीओपीडी) के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से बुधवार को करनाल में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अस्पताल के इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी एंड स्लीप के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ.इंदर मोहन चुघ ने कहा कि सीओपीडी का मुख्य कारण धूम्रपान करना है। सीओपीडी की समस्या उन लोगों में भी हो सकती है जो रसायनों, किसानों द्वारा फसलों के ठूंठ जलाने, धूल या धुएं के अलावा खाना पकाने के जैविक ईंधन जैसे फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले प्रदूषकों के संपर्क में लंबे समय तक रहते हैं।
सीओपीडी से पीडि़त लोगों में हृदय रोग, फेफड़े के कैंसर और कई अन्य बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है। इन दिनों में पराली का धुआं भी इस बीमारी का बड़ा कारण बनता जा रहा है। स्मॉग के कारण एनसीआर क्षेत्र में सांस लेने की दिक्कतों संबंधी अथवा फेफड़ की बीमारियों में में बीस प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक-दूसरे से फैलने वाली बीमारियों की संख्या 37 प्रतिशत से बढक़र 61 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। सीओपीडी से करीब 3 से 8 प्रतिशत भारतीय पुरूष और 2.5 से 4.5 प्रतिशत भारतीय महिलाएं पीडि़त हैं।
क्रोनिक ब्रोंकाइटिस ब्रोन्कियल ट्यूबों की लाइनिंग का इंफ्लामेशन है, जो फेफड़ों के एयर सैक्स (एलवियोली) में हवा लाती और यहां से हवा ले जाती है। इसमें खांसी होती है और बलगम बनता है।
जैसे-जैसे तापमान में कमी आती है,सीओपीडी से पीडि़त लोग बीमारी के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं। अधिक सर्दी, फ्लू, और अन्य श्वसन वायरस का प्रकोप ठंडे मौसम में बढ़ जाता है। लगातार कम तापमान के कारण थकान हो सकती है, और यहां तक कि तेज हवा चलने वाले दिनों में सांस की तकलीफ पैदा हो सकती है। ठंडे मौसम के दौरान यह लक्षण अधिक बढ़ जाते हैं।
सीओपीडी के मुख्य लक्ष्ण
सांस लेने में परेशानी का बढऩा
लगातार खांसी रहना (बलगम के साथ और बलगम के बगैर)
छाती में घरघराहट रहना
छाती में जकडऩ रहना
सांस लेने में परेशानी का बढऩा
लगातार छाती में संक्रमण