चंडीगढ़,12 नवंबर ( न्यूज़ अपडेट इंडिया ) : वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने रविवार को चंडीगढ़ के प्रेस क्लब में पत्रकारिता पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि बदलते समय में पत्रकारों को नई तकनीक से दोस्ती करनी होगी। चुनौतियां बढ़ रही हैं। सही पत्रकारिता की राह चुनने पर धमकी और मुकदमे का भय दिखाया जा रहा है। ऐसे में नए दौर की पत्रकारिता का समय आ गया है। पत्रकारों को संगठित होना होगा, अपनी समझ बढ़ानी होगी। राजदीप ने कहा कि पत्रकारिता मुनाफे का नहीं अपितु लोकतंत्र की रक्षा का मंत्र है। पत्रकारिता मिशन है, प्रतिबद्धता है। आज पत्रकार के वेतन, बीमा, जोखिम के समय में सामाजिक सुरक्षा समय की बड़ी आवश्यकता है। ऐसे में डिजिटल युग की पत्रकारिता के लिए पारंपरिक रास्ते का मोह छोड़ना होगा। पत्रकारों को रविंद्र नाथ टैगोर की कविता पर चलना होगा-जोदि तोर डाक शुने केऊ ना आसे तोबे एकला चलो रे।
समस्या उठाने वाले को बोलते हैं देशद्रोही
सरदेसाई ने कहा कि यदि किसी भी समस्या को उठाते हैं तो आपको देशद्रोही कहा जाता है। पत्रकारों को इससे जूझना होगा। अभी भी प्रिंट मीडिया का काम ठीक है क्योंकि इसमें तथ्यों पर ध्यान दिया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में तो अब केवल विवाद किया जाता है। हमें समाज की हित की बात करनी होगी।
राहुल गांधी पर किया कटाक्ष
राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि उनको पहले से गुजरात चुनाव की तैयारी करनी चाहिए। आाखिरकार राहुल गाधी पार्टी नेतृत्व की बागडोर संभालने वाले हैं। काग्रेस की आक्रामक मीडिया रणनीति में गहमागहमी है। सच तो यह है कि जहा काग्रेस दावा कर सकती है कि उसे वापसी की गंध रही है, वहीं, वास्तविकता अब भी दिल्ली दूर अस्त का मामला है। उनके हाल ही में दिए भाषण से इस व्यापक धारणा की पुष्टि होती प्रतीत हुई कि राहुल अनिच्छुक राजनेता हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी पराजय के बाद वे पृष्ठभूमि में चले गए, लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने की चुनौती लेने से भी इन्कार कर दिया।
भाजपा के पास आरएसएस की सांगठनिक मशीन
काग्रेस के विपरीत भाजपा के पास आरएसएस की टिकाऊ सागठनिक मशीन है, जो निरपेक्ष सत्ता की इसकी तलाश के दौरान किसी नैतिक समझौते के नुकसान की भरपाई कर सकती है। लेकिन भाजपा नेतृत्व को भी यह समझना चाहिए कि राजनीतिक विश्वसनीयता कोई फिक्स्ड डिपॉजिट नहीं है, बल्कि ऐसी चीज है, जिसका लगातार नवीनीकरण करते रहना पड़ता है।
तितली न बनें कॉकरोच बनें
अंत में राजदीप सरदेसाई ने कहा कि पत्रकारों का जीवन तभी बच सकता है जब वे समाज की हित की बात करें परंतु अभी समाज मूक है। केवल दर्शक बना हुआ है समाज। पत्रकारों को सरकार के खिलाफ लिखना होगा। एक उदाहरण देकर उन्होंने कहा कि एटमी युद्ध में केवल कॉकरोच ही जीवित रहेगा। इसलिए तितली न बनें, कॉकरोच बनें।