चंडीगढ़,15 अक्तूबर ( न्यूज़ अपडेट इंडिया ) । पूरे देश में भले ही भाजपा का ग्राफ बढ़ा हो लेकिन पंजाब में उसके लिए हालात इसके उलट है। राज्य में भाजपा को लगातार दूसरी बार मुंह की खानी पड़ी है। विधानसभा चुनाव के बाद अब गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। इस हार के साथ ही भाजपा में उठापटक होनी भी तय है। इससे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विजय सांपला की छुट्टी होने लगभग तय मानी जा रही है। सांपला की अगुवाई में राज्य में भाजपा की यह एक वर्ष में दूसरी बड़ी हार है।बताया जाता है कि विजय सांपला को प्रदेेश भाजपा की पटकथा तो गुरदासपुर उपचुनाव से पहले ही लिखी जा चुकी है, लेकिन उपचुनाव को देखते हुए इसे टाल दिया गया था। पार्टी इस मौके पर नया प्रधान बनाने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। मार्च में विधानसभा चुनाव के बाद ही तय हो गया था कि प्रदेश प्रधान बदला जाएगा क्योंकि विधानसभा चुनाव में भाजपा 12 से तीन सीटों पर सिमट गई थी। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच नए प्रधान को लेकर नाम तय न हो पाने के कारण मामला टलता रहा। भाजपा के वरिष्ठ नेता भी मानते हैं कि अगर उपचुनाव से पहले प्रदेश प्रधान को लेकर पार्टी फैसला ले लेती तो यह दुर्गति नहीं होती क्योंकि अपने सिर पर तलवार लटके होने के कारण विजय सांपला जितना अपने ट्विटर एकाउंट पर सक्रिय रहे उतना जमीनी स्तर पर नहीं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता तो यहां तक कहते हैं कि कई बार यह भी शंका हो जाती थी कि चुनाव भाजपा लड़ रही है या अकाली दल। पूर्व अकाली मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह पर दुष्कर्म का आरोप लगने के बाद अकाली दल जितनी सक्रियता से चुनाव प्रचार में लगा हुआ था उससे ऐसा प्रतीत ही नहीं हो रहा था कि उम्मीदवार भाजपा का है। राजनीतिक जानकाराें का कहना है कि गुरदासपुर उपचुनाव के साथ अकाली दल अपने कार्यकर्ताओं को उत्साहित करना चाहता था और लंगाह प्रकरण के बाद डैमेज कंट्रोल की नीति पर चल रहा था। वहीं, अकाली दल का उद्देश्य 2017 नहीं बल्कि 2019 का लोकसभा चुनाव और 2022 का विधानसभा चुनाव था। यही कारण है कि अकाली दल की सक्रियता भाजपा से भी अधिक थी। बहरहाल भाजपा अगर अपने प्रदेश प्रधान को लेकर जल्दी कोई फैसला नहीं लेती है तो इसका असर आने वाले चार नगर निगमों के चुनाव पर भी पड़ सकता है जोकि संभवत: दिसंबर में होंगे।