गुरुग्राम। यह सरकारी तंत्र का फेलियर ही कहा जाएगा कि जहां पर वाहनों के पंजीकरण की अथॉरिटी हो और वहां पर एक सरकारी गाड़ी का पंजीकरण ना हो। अपने संचालन की उम्र को पूरी करके कबाड़ हो चुकी एक फायर बिग्रेड के साथ ऐसा ही हुआ है। यहां लगातार 22 साल तक फायर ब्रिगेड केंद्र में उस गाड़ी से आग बुझाने की सेवाएं ली गई, लेकिन कभी उसका पंजीकरण नहीं हो पाया। 84 के दंगों में भी आग बुझाने में इस गाड़ी का अहम योगदान रहा।
यहां आने से लेकर जब तक काम में ली जाती रही, तब तक यह फायर ब्रिगेड टैम्प्रेरी नंबर पर ही यहां चलती रही। इसके लिए सदा यही कहा गया कि इसके कागजात खो चुके हैं और कंपनी से नए कागजात नहीं आए। गुरुवार को सरकार से विशेष परमिशन लेने के बाद इसकी बोली लगा दी गई। यहां भीम नगर स्थित शहर के पहले फायर स्टेशन में यह गाड़ी वर्ष 1965 में रेवाड़ी से लाई गई थी। एक साल पहले ही वहां पर इसकी खरीद की गई थी।
जब 15 हजार से भी कम में खरीदी गाड़ी अब 1 लाख 38 हजार में बिकी
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के दौरान हुए 84 के दंगों में भी इस गाड़ी की आग बुझाने में अहम भूमिका रही। उस समय इस गाड़ी को दिल्ली-गुरुग्राम की सीमा पर तैनात किया गया था। दंगाईयों द्वारा कई जगह वाहनों में आग लगाई गई। आगजनी की घटनाओं पर काबू पाने के लिए इसी गाड़ी का इस्तेमाल किया गया।
फायर ऑफिसर ईशम सिंह कश्यप बताते हैं कि वे उस समय गुरुग्राम में इसी गाड़ी पर फायर मैन थे। पूरा गुरुग्राम लंका की तरह जल रहा था। इसी गाड़ी से जगह-जगह वे आग बुझाते फिर रहे थे। गुरुवार को इस ऐतिहासिक गाड़ी की बोली के मौके पर फायर अधिकारी ईशम सिंह कश्यप के अलावा हरियाणा राज्य इंजीनियरिंग कारपोरेशन के जीएम विनोद कुमार, एमसीजी के अकाउंड ऑफिसर प्रवीण सैनी, एमसीजी ट्रांसपोर्ट एई राजीव यादव, भीम नगर एफएसओ सुनील कुमार मौजूद रहे। 15 हजार रुपए से इस गाड़ी की बोली शुरू हुई थी। आखिर में आदित्य इंटरप्राइजेज मुरथल रोड सोनीपत के नाम 1 लाख 38 हजार रुपए में गाड़ी की बोली पर मुहर लगा दी गई।